हनुमान जी कौन हैं और धर्म में उनका क्या स्थान है ...........


हनुमान जी कौन हैं और धर्म में उनका क्या स्थान है ...........

वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस इत्यादि ग्रन्थों में महावीर हनुमान का विशद चरित्र उपलब्ध है। उनका जन्म त्रेतायुग में हुआ था। वह केसरI नामक वानर जातीय नरेश के पुत्र थे। शंकर जी के आशीर्वाद और पवनदेव के सहयोग से उनका जन्म हुआ था। उनकी मां का नाम अंजनी था। बाल्यकाल से ही वह भगवान शिव के कृपापात्र थे। प्रकारान्तर sए वह शिव के ही अंश थे।पूर्वजन्म से उनकी साधना शिवतत्त्व तक ही थी। वह आजीवन अखण्ड ब्रह्मचारी और भगवान के अंतरंग सेवक थे। जो भी उनके सानिध्य में आया उसे उन्होंने भगवान राम की सेवा में लगा लिया।

किष्किन्धा नरेश बालि के अनुज सुग्रीव के वह प्रधान सचिव थे। बालि ने उन्हें अपने राज्य से निष्कासित कर दिया था। सुग्रीव मारे मारे फिर रहे थे, हनुमान ने उन्हें पुनः किष्किन्धा का राज्य दिलाया। लंका में विभीषण की भीयही दशा थी। हनुमान से उन्होंने कहा कि वह लंका में वैसे ही जीवन यापन कर रहे हैं, जैसे दांतों के मध्य जिह्वा रहती है। क्या आप मेरे जैसे अधम पर भी भगवान कृपा करेंगे।

हनुमान ने उन्हें प्रोत्साहन दिया-

कहहु कवन मैं परम कुलीना।
कपि चंचल सबहिं बिधि हीना॥
प्रात लेई जो नाम हमारा।
तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥
अस मैं अधम सखा सुनु, मोहू पर रघुबीर।
कीन्ही कृपा सुमिरि गुन,भरे बिलोचन नीर॥ (मानस, ५/७)

हनुमान बोले- विभीषण जी! मैं ही कौन बड़ा कुलीन हूं। मैं कपि हूं, चंचल हूं और हर प्रकार से हीन हूं।प्रातः कोई हमारा नाम ले ले तो दिनभर भोजन नसीब नहीं होगा। मैं इतना अधम हूं फिर भी प्रभु ने मेरे ऊपर कृपा की है। आप तो रज्कुल के हैं। चलें राम की शरण! उन्हें राम की शरण में भेज दिया, लंकेश बना दिया। हनुमान जी का सम्पूर्ण जीवन परमात्मा राम के प्रति समर्पण है। जो भी हनुमान जी की शरण में आया, उन्होंने उसे मुक्ति नहीं दी अपितु राम जी के चरणों में लगा दिया-

बड़भागी अंगद हनुमाना।
चरण कमल चापत बिधि नाना॥ (मानस, ६/१०/७)

अंगद ने हनुमान का अनुसरण किया तो उन्होंने भी भगवान के चरण-कमलों की सेवा प्राप्त कर ली। मानस जिनके हृदय की उपज है उन भगवान शंकर का निर्णय है-

हनुमान सम नहिं बड़भागी।
नहिं कोऊ रामचरन अनुरागी॥ (मानस ७/४९/8)

उन प्रभु के चरणों में अनुराग के कारण ही हनुमान भाग्यशाली कहे गये।

सुमिरि पवनसुत पावन नामू।
अपने बस करि राखेउ रामू॥

पावन राम नाम का स्मरण करके भगवान राम को भी अपने वश में कर लिया।

सुनहु उमा ते लोग अभागी।
हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी॥

वे लोग अभागे हैं जो एक परमात्मा को छोड़कर विषयों में अनुरक्त होते हैं। हनुमान 'ज्ञानिनामग्रगण्यं'--ज्ञानियों में अग्रगण्य थे।

हनुमान बन्दर थे। बन्दर मनुष्यों की प्रजाति थी न कि पशु! प्राचीन जातियों में पशु-पक्षियों के चिह्न राष्ट्रीय ध्वजों पर अंकित रहते थे। उदाहरण के लिए नाग क्षत्रियों की एक प्रजाति थी। नागकन्या से अर्जुन का विवाह हुआ था। ऋक्षराज जाम्बवान की कन्या से श्रीकृष्ण का विवाह हुआ था। समुद्रगुप्त ने नौ नागवंशीय राजाओं को परास्त किया था। इन राजाओं के मुकुट पर नाग अंकित रहता था। अस्तु नाग, मण्डूक , हैहय, गज, वानर, ऋक्ष इत्यादि प्राचीन भारत की मानव प्रजातियां थीं। इसी क्रम में हनुमान भी आपके सम्मानित पूर्वज थे।