छठी इंद्री अथवा सिक्स्थ सेन्स...  Sixth Sense
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इस नस्वर रूपी मृत संसार में हर मनुष्य में किसी भी चीज को जानने समझने के लिए प्रकृति प्रदत्त पांच इन्द्रियां दी हुई हैं।

आँख ,देखने के लिए,कान सुनने के लिए ,नाक ,सूंघने के लिए ,जीभ चखने के लिए ,हाथ स्पर्श के लिए।
इनके द्वारा प्राप्त सूचनाएँ मष्तिष्क विश्लेषित करता है इनके अतिरिक्त व्यक्ति में अतीन्द्रियरूप से कोई शक्ति हो की वह भूत-भविष्य -वर्त्तमान की घटनाए आभास कर ले तो उस शक्ति को सिक्स्थ सेन्स अथवा छठी इंद्री कहते हैं ।



*छठी इंद्री अथवा सिक्स्थ सेन्स ,आभास की उस शक्ति को कहते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति को अच्छे-बुरे आदि का आभास स्वयमेव हो जाता है*।

यह एक अतीन्द्रिय शक्ति है *जब आप  अध्यात्म रूपी उस अलौकिक शक्ति के सनसर्ग में आते है तो आप स्वय यह देखते है की आपके मस्तिष्क के भीतर कपाल के नीचे एक छिद्र है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं, वहीं से सुषुन्मा रीढ़ से होती हुई मूलाधार तक गई है*।

जहा सुषुन्मा नाड़ी जुड़ी है सहस्त्रार चक्र से। इड़ा नाड़ी शरीर के बायीं तरफ स्थित है तथा पिंगला नाड़ी दायीं तरफ।

*इड़ा नाड़ी में चंद्र स्वर और पिंगला नाड़ी में सूर्य स्वर स्थित रहता है*।

सुषुम्ना मध्य में स्थित है, अतः जब हमारी नाक के दोनों स्वर चलते हैं तो माना जाता है कि सुषम्ना नाड़ी सक्रिय है। इस सक्रियता से ही सिक्स्थ सेंस जाग्रत होता है।

यह इंद्री सभी में सुप्तावस्था में होती है। भृकुटी के मध्य निरंतर और नियमित ध्यान एवम् उस अलौकिक दिब्य शक्ति कुण्डलनी शक्ति के जागृत  करते रहने से आज्ञाचक्र जाग्रत होने लगता है जो हमारे सिक्स्थ सेंस को बढ़ाता है।
छठी इंद्री (सिक्स्थ सेंस) को जाग्रत करने के लिए योग में अनेक उपाय बताए गए हैं। इसे परामनोविज्ञान का विषय भी माना जाता है।

असल में यह संवेदी बोध का मामला है। गहरे ध्यान प्रयोग से यह स्वत: ही जाग्रत हो जाती है। मेस्मेरिज्म या हिप्नोटिज्म जैसी अनेक विद्याएँ इस छठी इंद्री के जाग्रत होने का ही कमाल होता है।

जब हम इस दिब्य अलौकिक शक्ति को जागृत करने की ओर कदम बढ़ाते है तो सबसे पहले हमे अभ्यास का स्थान सुनिश्चित करना चाहिए।

अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जरूरी है साफ और स्वच्छ वातावरण, जहाँ फेफड़ों में ताजी हवा भरी जा सके अन्यथा आगे नहीं बढ़ा जा सकता।

शहर का वातावरण कुछ भी लाभदायक नहीं है, क्योंकि उसमें शोर, धूल, धुएँ के अलावा जहरीले पदार्थ और कार्बन डॉक्साइट निरंतर आपके शरीर और मनका क्षरण करती रहती है। स्वच्छ वातावरण में सभी तरह के प्राणायाम को नियमित करना आवश्यक है।

मौन ध्यान : ध्यान दे साधक गण----

भृकुटी पर ध्यान लगाकर निरंतर मध्य स्थित अँधेरे को देखते रहें और यह भी जानते रहें कि श्वास अंदर और बाहर हो रही है। मौन ध्यान और साधना मन और शरीर को मजबूत तो करती ही है, मध्य स्थित जो अँधेरा है वही काले से नीला और नीले से सफेद में बदलता जाता है।

सभी के साथ अलग-अलग परिस्थितियाँ निर्मित हो सकती हैं।मौन से मन की क्षमता का विकास होता जाता है जिससे काल्पनिक शक्ति और आभास करने की क्षमता बढ़ती है। इसी के माध्यम से पूर्वाभास और साथ ही इससे भविष्य के गर्भ में झाँकने की क्षमता भी बढ़ती है। यही सिक्स्थ सेंस के विकास की शुरुआत है।अंतत: हमारे पीछे कोई चल रहा है या दरवाजे पर कोई खड़ा है, इस बात का हमें आभास होता है। यही आभास होने की क्षमता हमारी छठी इंद्री के होने की सूचना है।



जब यह आभास होने की क्षमता बढ़ती है तो पूर्वाभास में बदल जाती है। मन की स्थिरता और उसकी शक्ति ही छठी इंद्री के विकास में सहायक सिद्ध होती है।

इसका लाभ यह होता है कि व्यक्ति में भविष्य में झाँकने की क्षमता का विकास होता है। अतीत में जाकर घटना की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मीलों दूर बैठे व्यक्ति की बातें सुन सकते हैं। किसके मन में क्या विचार चल रहा है इसका शब्दश: पता लग जाता है।

एक ही जगह बैठे हुए दुनिया की किसी भी जगह की जानकारी पल में ही हासिल की जा सकती है। छठी इंद्री प्राप्त व्यक्ति से कुछ भी छिपाया नहीं जा  सकता और इसकी क्षमताओं के विकास की संभावनाएँ अनंत हैं।
जिसे कोई भी साधारण मनुष्य या कोई भी बैज्ञानिक समझ नही सकता यह आध्यत्मिक साधना की उच्तम अवस्था है।ॐ शिव ॐ शिव ..
जय माँ आदि शक्ति..हरि शरणम्...